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भूले हुए मंदिर का श्राप


 



अध्याय 1: अंधेरे में फुसफुसाहट

गाँव पाली एक साधारण भारतीय गाँव था, जो घने और रहस्यमयी कालीघाट जंगल के किनारे बसा हुआ था। यहाँ लोग अपनी खेती-बाड़ी में व्यस्त रहते थे और छोटी-छोटी चीज़ों में खुश रहते थे। लेकिन इन दिनों गाँव की हवा में एक अजीब सा बदलाव महसूस हो रहा था। लोग अब शाम ढलने के बाद अपने घरों से बाहर निकलने से डरते थे। जहाँ पहले रात को झींगुरों की आवाज़ और हल्की हवा चलती थी, वहीं अब एक भयानक खामोशी फैल चुकी थी। ऐसा लगता था मानो खुद रात डर गई हो।

सबसे पहले अजीब घटनाएँ रवि के साथ शुरू हुईं। रवि गाँव का एक मेहनती किसान था, जिसने अपनी छोटी सी जमीन पर सालों से खेती की थी। एक शाम, जब वह खेत से घर लौटा, तो उसने पाया कि उसके मवेशी गायब थे। उसकी फसलें, जो एक दिन पहले तक हरी-भरी थीं, अचानक सूख गईं थीं। वह अचंभित होकर इधर-उधर देखता रहा, लेकिन कुछ समझ नहीं आया।

थके हुए रवि ने जैसे ही अपने घर का दरवाज़ा खोला, उसकी नज़र दरवाजे पर खरोंचों से बने अजीब निशानों पर पड़ी। वे चिन्ह किसी जादुई प्रतीकों जैसे लग रहे थेकुछ ऐसा जो उसने पहले कभी नहीं देखा था। उसने सोचा कि यह किसी शरारती बच्चे की करतूत होगी। लेकिन जब रात में उसे अपने ही नाम की धीमी आवाज़ें सुनाई दीं, जो सीधे जंगल से रही थीं, तो उसका दिल एक अनजाने डर से काँप उठा।

उस रात, रवि की नींद टूट गई। वह पसीने से तरबतर था और उसके दिमाग में भयानक सपने चल रहे थेकालीघाट के जंगल के घने पेड़ों के बीच कहीं एक पुराना मंदिर, जहाँ अजीबोगरीब मूर्तियाँ और अनजानी शक्तियाँ मंडरा रही थीं। रवि ने पहले इन सबको एक सपना समझा, लेकिन अब उसे यह सब हकीकत लगने लगा था।

अगले दिन गाँव में खबर फैली कि लक्ष्मी, जो गाँव के एक कोने में अकेली रहती थी, ने भी रात में अपने मृत पति की आवाज़ें सुनी थीं। राजू, जो गाँव का लोहार था, ने दावा किया कि उसे देर रात अपनी भट्टी के पास किसी की परछाई दिखाई दी, जो उसे घूर रही थी। धीरे-धीरे गाँव के कई लोग इन अजीब घटनाओं से घिरने लगे। ऐसा लगने लगा मानो यह सिर्फ एक-दो लोगों तक सीमित नहीं था।

गाँव में कुछ लोग इसे महज अंधविश्वास मान रहे थे, लेकिन रवि को यकीन था कि कुछ बड़ा और खतरनाक होने वाला था। और इसका जवाब उस कालीघाट जंगल में छिपा हुआ था, जहाँ सदियों पुराना अनयक मंदिर खड़ा था, एक भयानक श्राप के साथ।


अध्याय 2: बुजुर्गों के राज

गाँव के लोग धीरे-धीरे इस डरावनी हकीकत को महसूस करने लगे थे। हर दिन कोई कोई नई घटना सामने रही थी, जिसने पूरे गाँव को अजीब से सन्नाटे में धकेल दिया था। गाँव के बुजुर्गों, जिनमें सबसे प्रमुख पंडित जी थे, ने आपस में चर्चा की। उन्होंने महसूस किया कि इन घटनाओं का संबंध गाँव के इतिहास से हो सकता हैवह इतिहास, जिसे सालों से छिपा कर रखा गया था।

एक शाम, जब गाँव में गहराती रात छा रही थी, पंडित जी ने गाँव के कुछ खास बुजुर्गों को बुलाया और गाँव के बीच बने एक पुराने बरगद के पेड़ के पास की कुटिया में गुप्त बैठक बुलाई। पंडित जी ने सभी को चेतावनी दी कि जो भी वे सुनेंगे, उसे किसी और को बताने की मनाही है।

लेकिन रवि, जो अब तक इन घटनाओं से व्याकुल हो चुका था, चोरी-छुपे उस कुटिया तक पहुँच गया और वहाँ चल रही बातें सुनने लगा।

पंडित जी की गंभीर आवाज़ ने माहौल को और भी तनावपूर्ण बना दिया। उन्होंने बताया, “यह सिर्फ साधारण घटनाएँ नहीं हैं। यह सब कालीघाट के जंगल से जुड़ा हुआ है, जहाँ सदियों पहले गाँव के पूर्वजों ने अनयक मंदिर में कुछ छिपाया था। यह मंदिर एक साधारण पूजा स्थल नहीं था। इसे किसी बुरी शक्ति को बंदी बनाने के लिए बनाया गया था। लेकिन अब यह शक्ति जाग रही है।

पंडित जी ने यह भी बताया कि मंदिर में बंद की गई आत्मा अनयक एक भयंकर प्राचीन शक्ति थी। उसकी कैद ने गाँव को सुरक्षित रखा था, लेकिन अब कैद का जादू कमज़ोर हो चुका था। यदि इसे समय रहते नहीं रोका गया, तो वह आत्मा गाँव पर अपना कहर बरपाएगी।

रवि के रोंगटे खड़े हो गए। उसे अब समझ रहा था कि जो भी हो रहा था, वह सिर्फ उसके सपनों का हिस्सा नहीं था। वह जानता था कि उसे इस रहस्य का सामना करना पड़ेगा, और इसका उत्तर सिर्फ उस श्रापित मंदिर में मिलेगा।


अध्याय 3: जंगल में प्रवेश

रवि ने अपना मन बना लिया था। अब वह और इंतज़ार नहीं कर सकता था। गाँव के बाकी लोग चाहे जितना डरें, वह अकेले ही सच्चाई का सामना करने के लिए तैयार था। एक रात, जब पूरा गाँव गहरी नींद में था, रवि अपनी लालटेन और एक छोटी छुरी लेकर कालीघाट जंगल की ओर निकल पड़ा।

जंगल की गहराई में जाते ही, हर कदम के साथ रवि को एक अजीब सा डर महसूस होने लगा। पेड़ जैसे और ऊँचे और डरावने हो गए थे। उनकी शाखाएँ घने कोहरे में लिपटी हुई थीं, जैसे कि वे उसे जकड़ने के लिए तैयार हों। हवा में एक सर्द भयानकपन था, जो उसकी हड्डियों तक को कंपा रहा था।

जैसे-जैसे रवि जंगल में आगे बढ़ता गया, फुसफुसाहटें तेज़ हो गईं। उसे साफ सुनाई दे रहा था कि कोई उसका नाम पुकार रहा है। आवाज़ें उसे किसी अदृश्य शक्ति की तरह खींच रही थीं। घबराहट में भी उसके कदम अपने आप आगे बढ़ते गए।

रास्ते भर ऐसा लग रहा था मानो पेड़ उसे देख रहे हों। उसे कई बार महसूस हुआ कि कोई पीछे से उसे घूर रहा है, लेकिन जब वह मुड़कर देखता, तो वहाँ सिर्फ गहरा कोहरा और सन्नाटा होता। रवि के दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी, लेकिन उसका हौसला बरकरार था।

आखिरकार, रवि एक बड़े मैदान में पहुँच गया। उसके सामने थाअनयक मंदिर

मंदिर की संरचना समय की मार से जर्जर हो चुकी थी, लेकिन उसमें अब भी कुछ ऐसा था जो उसकी रहस्यमयता और खौफ को बरकरार रखे हुए था। पत्थरों पर उकेरी गई आकृतियाँ धुंधली और विचित्र थींमानो वे इंसान नहीं, बल्कि कुछ और थीं। मंदिर के दरवाज़े पर बड़े-बड़े बेलों ने जाल बना रखा था, लेकिन वहाँ से एक ठंडी, भारी हवा बाहर रही थी।

रवि अभी मंदिर के करीब जाने ही वाला था कि उसके पीछे से किसी ने उसे पुकारा, “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”

रवि के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उसने तेजी से मुड़कर देखा। वहाँ खड़ा था राघव, गाँव का लोहार। उसकी आँखों में डर साफ दिखाई दे रहा था।यहाँ से चलो, रवि! यह जगह बुरी है। तुम नहीं जानते, तुमने क्या किया है।

रवि अभी समझ पाता, इससे पहले ही मंदिर के अंदर से ज़मीन हिलने लगी।


अध्याय 4: जागृति

मंदिर की जमीन में हो रही हलचल अब तेज़ हो गई थी। रवि और राघव दोनों काँपते हुए पीछे हटे। जैसे ही मंदिर के दरवाज़े पर लगी बेलें अपने आप सरकने लगीं, दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा। अंदर का अंधकार इतना गहरा था कि उसे देखना भी भयावह था।

मंदिर के भीतर से एक धीमी लेकिन डरावनी गुर्राहट गूँजने लगी। रवि और राघव ने कोशिश की कि वे पीछे हट जाएँ, लेकिन उनके कदम जमे हुए थे। कुछ ही पलों में एक अदृश्य शक्ति ने उन्हें ज़मीन पर गिरा दिया। रवि की लालटेन टूट गई और चारों ओर गहरा अंधकार छा गया।

गुर्राहट अब और तेज़ हो गई थी, और ऐसा लग रहा था मानो यह गुर्राहट उनके दिलों को चीर रही हो। वातावरण में एक भयानक ऊर्जा फैल चुकी थी, जिससे उनका दम घुटने लगा था।

फिर, अचानक एक भयानक चीत्कार गूँज उठामंदिर से निकला काला धुँधला आकार, हवा में तैरता हुआ रवि और राघव की ओर तेजी से बढ़ने लगा। यह एक मानवीय आकृति का साया था, लेकिन उसकी आँखें जलती हुई अंगारों जैसी लाल थीं, और उसकी उपस्थिति से ठंडी हवा में भीषण गर्मी फैल गई थी। उस साए के करीब आते ही रवि और राघव दोनों के शरीर में एक अजीब सा कंपन होने लगा, जैसे उनकी आत्मा उनके शरीर से बाहर खींची जा रही हो।

रवि ने अपनी पूरी ताकत जुटाकर पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन उसकी आँखें उस आकृति पर जमी रहीं। उसके मुँह से कोई आवाज़ नहीं निकल रही थी, मानो वह पूरी तरह से पंगु हो गया हो। लेकिन फिर, एक अचानक तेज़ झटका लगा और गुर्राहट बंद हो गई। काली आकृति मंदिर के अंदर की ओर फिर से गायब हो गई, और दरवाजे की बेलें फिर से उसे ढकने लगीं।

रवि ने राहत की साँस ली, लेकिन यह स्पष्ट था कि कुछ बहुत बुरा जाग चुका था।

हमें वापस गाँव जाना होगा!” राघव ने काँपते हुए कहा, उसकी आवाज़ डर से भर गई थी।यहाँ से जितनी जल्दी हो सके भाग निकलो। अब कुछ बहुत बुरा होने वाला है।

रवि, जिसे लग रहा था कि मंदिर में बंद की गई आत्मा ने अपनी जागृति का संकेत दे दिया है, कुछ बोल सका। दोनों ने मंदिर की ओर एक आखिरी डरावनी नज़र डाली और दौड़ते हुए जंगल से बाहर निकलने की कोशिश करने लगे। लेकिन जैसे-जैसे वे भागे, जंगल में पहले से भी ज्यादा अजीब और भयानक घटनाएँ होने लगीं। पेड़ों की शाखाएँ खुद--खुद हिलने लगीं, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रही हो।

रवि और राघव, हाँफते हुए, गाँव की ओर भागते रहे। उन्हें समझ गया था कि जो भी ताकत जागी है, वह अब गाँव की ओर बढ़ रही है।


अध्याय 5: गाँव में अराजकता

रवि और राघव जब किसी तरह गाँव पहुँचे, तब तक गाँव में हालात और बिगड़ चुके थे। हवा में भारीपन और सन्नाटा था, जैसे कुछ खतरनाक घटित होने वाला हो। गाँव के लोग इधर-उधर भाग रहे थे। कई घरों के दरवाजों पर वही अजीब निशान दिखाई देने लगे थे, जो रवि के घर पर पहली बार दिखे थे।

लेकिन अब बात और बढ़ चुकी थी। लक्ष्मी, जो पहले जंगल के पास गई थी, गाँव के बीचों-बीच खड़ी थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, और वह बिना किसी भावना के सीधे आकाश की ओर देख रही थी। गाँव के लोग उससे डरकर दूर खड़े थे। उसकी हालत देखते ही बन रही थीउसके शरीर पर विचित्र नीले निशान उभर आए थे, और उसकी त्वचा बेहद ठंडी थी।

रवि और राघव दौड़ते हुए गाँव के बीच पहुँचे और लोगों को घेरते देखा। रवि ने लक्ष्मी को इस हालत में देख अपनी आँखों पर विश्वास नहीं किया।लक्ष्मी!” उसने चिल्लाकर कहा, लेकिन वह कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रही थी। तभी, अचानक लक्ष्मी ने एक भयानक चीख मारी, उसकी आवाज़ में इतनी तीव्रता थी कि सभी के कान सुन्न हो गए।

लक्ष्मी की यह चीख मानो उस बुरी आत्मा की आवाज़ थी, जो अब उसके शरीर में प्रवेश कर चुकी थी। गाँव के लोग डर के मारे इधर-उधर भागने लगे। कुछ लोग मंदिर की कहानियाँ याद करते हुए रोने लगे। पंडित जी और कुछ बुजुर्ग, जिनकी सलाह पहले किसी ने नहीं मानी थी, अब समझ चुके थे कि श्राप की शक्ति जाग चुकी है।

रवि ने पंडित जी से सबकुछ बताया, मंदिर के अंदर हुई घटनाओं से लेकर उस काले साए तक, जिसने उनकी आत्मा को कंपा दिया था। पंडित जी ने गंभीर होकर कहा, “अब समय गया है कि उस श्राप का सामना किया जाए। अनयक की आत्मा को दोबारा कैद करने का एक ही तरीका है, लेकिन इसके लिए बलिदान देना होगा।

रवि ने सिर हिलाते हुए सहमति जताई, लेकिन भीतर ही भीतर वह जानता था कि जो भी बलिदान की बात हो रही है, वह किसी साधारण कीमत की नहीं, बल्कि किसी की जान की हो सकती है।


अध्याय 6: प्राचीन अनुष्ठान

पंडित जी ने गाँव के कुछ गिने-चुने लोगों को मंदिर में किए जाने वाले अनुष्ठान की तैयारी करने के लिए बुलाया। उन्होंने समझाया कि आत्मा को वापस बंद करने के लिए एक प्राचीन मंत्र और अनुष्ठान करना होगा, जिसे उनके पूर्वजों ने सदियों पहले अनयक की आत्मा को कैद करने के लिए किया था। लेकिन यह अनुष्ठान अत्यंत जोखिम भरा था। अगर कोई भी गलती होती, तो आत्मा हमेशा के लिए आजाद हो जाती और गाँव को तबाह कर देती।

पंडित जी ने रवि, राघव और कुछ और गाँव वालों को मंदिर तक जाने की योजना समझाई। उन्होंने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में अनयक की आत्मा का प्रतीक एक प्राचीन पत्थर रखा हुआ है, जो उसकी शक्ति को नियंत्रित करता है। अनुष्ठान को उसी पत्थर के सामने करना होगा, ताकि आत्मा फिर से जंजीरों में बाँध दी जाए।

रवि, जो अब तक इन घटनाओं से जूझ रहा था, ने पंडित जी की बातों को ध्यान से सुना। लेकिन उसके मन में एक सवाल उठ रहा थायह आत्मा क्यों जागी थी? और सबसे बड़ा सवाल यह था कि क्या इसके पीछे कोई और हाथ था?

राघव, जो रवि के साथ मंदिर गया था, अब उससे कुछ छिपा रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, जो रवि की नज़र से छिपी नहीं रही। लेकिन अभी वक्त नहीं था कि वह इस बारे में कुछ पूछे। उन्होंने पंडित जी की बात मानी और अगली सुबह मंदिर की ओर कूच करने की तैयारी शुरू कर दी।


अध्याय 7: जंगल में भय

अगली सुबह गाँव में तनाव और भय का माहौल था। लोग अपने-अपने घरों में दुबक गए थे, और जो बाहर थे, उनके चेहरों पर साफ डर दिखाई दे रहा था। अनुष्ठान के लिए पंडित जी, रवि, राघव और कुछ और गाँव वाले एक छोटे समूह में मंदिर की ओर चल पड़े। उनके साथ पवित्र जल, मंत्रों की पुस्तकें और कुछ विशेष सामग्री थी, जिनकी मदद से आत्मा को काबू में किया जा सके।

जंगल में कदम रखते ही एक अजीब सी घबराहट फैल गई। जैसे ही वे मंदिर के करीब पहुँचे, एक अजीब सी ठंडी हवा चलने लगी। हवा के साथ घुली हुई थी वही फुसफुसाहटें, जो अब तक लोगों को परेशान कर रही थीं। पेड़, जो पहले ही डरावने थे, अब और भी ज्यादा जीवंत लगने लगे, मानो वे इन लोगों को रोकने की कोशिश कर रहे हों।

रास्ते में अचानक से गाँव का एक व्यक्ति केशव गुम हो गया। वह समूह से अलग हो गया था, और उसकी चीखें सुनाई दीं। सबने उसे ढूँढने की कोशिश की, लेकिन वह कहीं नहीं मिला। डर और घबराहट ने सबको घेर लिया, लेकिन पंडित जी ने हिम्मत बनाए रखी और सभी को मंदिर की ओर बढ़ने का आदेश दिया।

जैसे ही वे मंदिर पहुँचे, दरवाजे अपने आप खुल गए। मंदिर के अंदर का अंधकार पहले से भी ज्यादा घना था, और वहाँ एक अजीब सी ऊर्जा महसूस हो रही थी। पंडित जी ने मंत्रों का जाप शुरू किया, लेकिन तभी एक भयानक आवाज़ गूँज उठीमानो अनयक खुद जाग चुका था और इस अनुष्ठान को रोकना चाहता था।


अध्याय 8: अंतिम संघर्ष

पंडित जी ने हिम्मत करते हुए अनुष्ठान शुरू किया। रवि और बाकी गाँव वाले मंत्रों का जाप कर रहे थे, जबकि पंडित जी गर्भगृह के सामने बैठकर आत्मा को वापस कैद करने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी।

गाँव के बुजुर्ग केशव, जो अचानक से गायब हो गया था, अचानक मंदिर में पहुँचा। लेकिन उसकी आँखें अब वैसी नहीं थीं जैसी पहले थीं। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, और उसका चेहरा एक दानवी मुस्कान से भरा हुआ था।

केशव ने जोर से हँसते हुए कहा, “तुम लोग सोचते हो कि तुम इस आत्मा को वापस कैद कर सकते हो? नहीं! अनयक अब आजाद है, और मैं उसकी शक्ति का हिस्सा हूँ!”

सब लोग चौंक गए। रवि और राघव को समझ में गया कि असली विश्वासघात यहाँ छिपा था। केशव ने लालच में आकर आत्मा से समझौता कर लिया था और उसी की वजह से यह सब हुआ था। अब वह अनयक का सेवक बन चुका था।

अब कुछ नहीं हो सकता,” केशव ने कहा, “तुम सबने अपनी मौत पर दस्तखत कर दिए हैं।

लेकिन रवि ने हार नहीं मानी। उसने अपनी छुरी निकाली और आगे बढ़ते हुए केशव पर हमला कर दिया। रवि का हमला कामयाब रहा। केशव जमीन पर गिर पड़ा, लेकिन मंदिर की शक्ति अब और तेज हो चुकी थी। पंडित जी ने जल्दी से अनुष्ठान पूरा करने की कोशिश की, लेकिन एक बलिदान अभी भी बाकी था।

 


अध्याय 9: बलिदान का समय

पंडित जी ने कहा, "श्राप को खत्म करने के लिए किसी को अपनी आत्मा को समर्पित करना होगा।"

रवि के कदम थम गए। पंडित जी की बात सुनकर सबके चेहरे पर भय और घबराहट फैल गई। बलिदान! यह शब्द मानो हवा में गूंज रहा था, और सभी समझ चुके थे कि यह बलिदान केवल एक व्यक्ति की मृत्यु से नहीं, बल्कि किसी की आत्मा के समर्पण से पूरा होगा। इसका अर्थ थाश्राप को रोकने के लिए किसी को अपनी आत्मा को उस मंदिर के अंधकार में हमेशा के लिए दफ़न करना होगा।

पंडित जी के शब्दों ने सबको स्तब्ध कर दिया, लेकिन रवि को समझ में गया था कि अब पीछे हटने का कोई रास्ता नहीं बचा। वह जानता था कि इस श्राप को रोकने का यह आखिरी मौका है, और अगर अब वह कुछ नहीं करेगा, तो पूरी दुनिया इस प्राचीन दुष्ट आत्मा के क्रोध का शिकार हो जाएगी।

रवि ने पंडित जी की ओर देखा, फिर उसने राघव की तरफ नजरें घुमाई। राघव के चेहरे पर गहरी उदासी और भय छाया हुआ था। लेकिन रवि के मन में दृढ़ता थी। वह जानता था कि यह उसकी जिम्मेदारी है।

"अगर कोई आत्मा समर्पित करनी होगी," रवि ने भारी दिल से कहा, "तो वह आत्मा मेरी होगी। मैं इस श्राप को रोकूँगा, चाहे मुझे अपनी जान क्यों देनी पड़े।"

राघव ने रवि की ओर दौड़ते हुए उसे रोकने की कोशिश की, "नहीं, रवि! यह मत करो! तुम अभी भी... तुम्हारे पास जिंदगी है...!" लेकिन रवि ने उसे हाथ के इशारे से रोक दिया। उसकी आँखों में दृढ़ निश्चय था, और उसे पता था कि इस बलिदान के बिना श्राप को कभी नहीं मिटाया जा सकेगा।

रवि ने पंडित जी से मंत्र पढ़ने का संकेत दिया। पंडित जी ने सिर झुकाकर रवि के बलिदान का सम्मान किया और मंत्र पढ़ना शुरू किया। जैसे ही पंडित जी ने आखिरी मंत्र की आवृत्ति की, गर्भगृह में काली शक्तियों का जाल फैलने लगा। मंदिर की दीवारें हिलने लगीं, और वहाँ की जमीन मानो काँपने लगी। सबको लगा कि मंदिर अब पूरी तरह से टूट जाएगा।

रवि गर्भगृह के पास गया, जहाँ वह प्राचीन पत्थर रखा थावह पत्थर जो अनयक की आत्मा को बाँधता था। उसने अपने हाथ उस पत्थर पर रखे और अपनी आँखें बंद कर लीं। उसे महसूस हुआ कि उसकी आत्मा अब इस पत्थर से जुड़ रही है, और धीरे-धीरे उसकी चेतना उस आत्मा में विलीन हो रही थी। उसकी साँसें धीमी होने लगीं, लेकिन उसका चेहरा शांत था।

अचानक, मंदिर में एक तीव्र प्रकाश फैल गया। वह प्रकाश इतना तेज था कि सबको अपनी आँखें बंद करनी पड़ीं। कुछ ही पलों में मंदिर का अंधकार पूरी तरह गायब हो गया। काली आत्मा का स्वरूप, जो मंदिर के अंदर मंडरा रहा था, धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा और अंततः पत्थर में समा गया।

रवि का शरीर वहीँ पत्थर के सामने गिर पड़ा। उसकी आत्मा अब उस श्रापित मंदिर के भीतर हमेशा के लिए बंधी हुई थी।


अध्याय 10: नया सूर्योदय

रात के उस भयानक दृश्य के बाद सब कुछ बदल चुका था। गाँव के लोग धीरे-धीरे मंदिर के पास इकट्ठे होने लगे, और जब उन्होंने देखा कि श्रापित आत्मा वापस कैद हो चुकी है, तो एक गहरी साँस ली। पंडित जी, जो अब बेहद थके हुए थे, धीरे से उठे और गर्भगृह के पास गिरे हुए रवि के शरीर को देखा। रवि अब इस दुनिया में नहीं था, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब सा सुकून था, जैसे उसने अपने जीवन का उद्देश्य पूरा कर लिया हो।

गाँव वालों ने रवि का अंतिम संस्कार बड़े सम्मान के साथ किया। उसकी वीरता की कहानी पूरे गाँव में फैल गई। हर कोई जानता था कि रवि ने अपने गाँव और अपने लोगों के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी।

कुछ हफ्तों बाद, गाँव में धीरे-धीरे सामान्य स्थिति लौट आई। वह अजीब घटनाएँ अब पूरी तरह से रुक चुकी थीं। पेड़ फिर से हरे-भरे दिखने लगे, और रात की खामोशी में फिर से झींगुरों की आवाज़ गूँजने लगी। लेकिन गाँव के लोग हमेशा उस घटना को याद रखते थे, जिसने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया था।

रवि की याद में गाँव के बीचों-बीच एक स्मारक बनाया गया, ताकि लोग हमेशा उसकी वीरता को याद रख सकें। पंडित जी ने मंदिर को फिर से बंद कर दिया और इसे एक पवित्र स्थान घोषित कर दिया, जहाँ अब कभी कोई नहीं जा सकेगा।

गाँव के लोग अब जानते थे कि कालीघाट का जंगल और अनयक का मंदिर हमेशा एक रहस्य बने रहेंगे। लेकिन रवि की कुर्बानी ने साबित कर दिया था कि साहस और आत्म-बलिदान से कोई भी श्रापित आत्मा को भी जीत सकता है।

सूरज फिर से गाँव के ऊपर चमक रहा था, और पाली गाँव ने एक नई शुरुआत की। लेकिन उस जंगल में दबी हुई कहानियाँ हमेशा लोगों के दिलों में बसी रहेंगीऔर रवि की कहानी, जिसने अपने गाँव को श्राप से मुक्त किया, सदियों तक जीवित रहेगी।


समाप्त

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